Pics: जान बचाने को इस कुएं में कूद गए थे लोग, देखकर याद आ जाएगा जलियांवाला बाग नरसंहार।
13 अप्रैल 1919 को अपनी जान बचाने के लिए लोगों ने कुएं में छलांग लगा दी थी। तस्वीरों में देखिए वो कुआं, जलियांवाला बाग नरसंहार की यादें ताजा हो जाएंगी।

जलियांवाला बाग नरसंहार को करीब सौ साल हो चुके हैं। 1919 में क्रूर अंग्रेज सिपाहियों ने निहत्थे लोगों पर गोलियों बरसा कर 1000 से ज्यादा लोगों की हत्या कर दी थी। मरने वाले इन बेकसूर लोगों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। बैसाखी के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में रोलेट एक्ट, अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों व दो नेताओं सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में एक सभा रखी गई, जिसमें कुछ नेता भाषण देने वाले थे।
शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था, फिर भी सैंकड़ों लोग बैसाखी के मौके पर परिवार के साथ मेला देखने और शहर घूमने आए हुए थे। जलियांवाला बाग में सभा की खबर सुन कर लोग वहां जा पहुंचे थे। करीब 5,000 लोग जलियांवाला बाग में इकट्ठे थे।
ब्रिटिश सरकार के कई अधिकारियों को यह सभा 1857 के गदर की पुनरावृत्ति जैसी लग रही थी, जिसे न होने देने के लिए वो कुछ भी करने के लिए तैयार थे। इसके लिए जनरल डायर को जिम्मेदारी दी गई।
जब नेता बाग में पड़ी रोड़ियों के ढेर पर खड़े होकर भाषण दे रहे थे, तभी ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर 90 ब्रिटिश सैनिकों को लेकर वहां पहुंच गया। सैनिकों ने बाग को घेर कर बिना कोई चेतावनी दिए निहत्थे लोगों पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं। 10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाई गईं। जलियांवाला बाग उस समय मकानों के पीछे पड़ा एक खाली मैदान था। वहां तक जाने या बाहर निकलने के लिए केवल एक संकरा रास्ता था।
जब गोलियां चलने लगीं तो लोग जान बचाने के लिए इधर उधर भागने लगे, लेकिन उस संकरे रास्ते के अलावा भागने का कोई रास्ता नहीं था। ऐसे में कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में बने कुएं में कूद गए और देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से पट गया। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है।
ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है। अनाधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए। इस घटना के प्रतिघात स्वरूप उधम सिंह कम्बोज ने 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में इस घटना के समय ब्रिटिश लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल फ्रांसिस ओ'ड्वायर को मार दिया था।
उन्हें 31 जुलाई 1940 को फांसी पर चढ़ा दिया गया।
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